शनिवार, 5 अप्रैल 2014

विधर्मी , विदेशी और विदेशी मानसिकता वाली सरकार को निकाल फेंकने की कसम खाएं और स्वदेशी सरकार संस्थापनार्थ भारत , भारतीय और भारतीयता के कट्टर समर्थक नमो की सरकार बनायें

विधर्मी , विदेशी और विदेशी मानसिकता वाली सरकार को निकाल फेंकने की कसम खाएं और स्वदेशी सरकार संस्थापनार्थ भारत , भारतीय और भारतीयता के कट्टर समर्थक नमो की सरकार बनायें 

इसमें कतई अत्तिश्योक्त्ति नहीं कि भारतवर्ष  के १९९८ में किये गए परमाणु विस्फोट से दुनिया की शक्तिशाली ताकते हिल गई थी , और उन्होंने दुनिया के अपने भावी कार्यक्रम अर्थात गेम प्लान में भारतवर्ष को और सत्ता की बागडोर संभाले भारतीय जनता पार्टी को केंद्रविंदु में रखकर अर्थात रडार पर लेकर रणनीति बनाई .  उन्हें इस रणनीति को बनाने की पुरजोर आवश्यकता इसलिए भी बनी की पश्चिमी देशो के प्रत्तिवंध अर्थात विविध  सेंक्शनस लगाने के बाद भी भारतवर्ष की विकास दर अक्षुण्ण बनी रही और भारतीय अर्थवयवस्था और भी मजबूत होकर निकली. भारतवर्ष के दुनिया में इतना मजबूत बनने से तो तथाकथित अंतर्राष्ट्रीय ताकतों को भविष्य की चिंता सताने लग गई और भारत के विषय में बहुत ही गंभीर चिंतन होने लगा. तत्पश्चात भारतीय जनता पार्टी को हाशिए पर रखने के लिए इन सभी शक्तियों ने मिलकर भारतवर्ष में एक विशेष देश परस्त नौकरशाह, पत्रकार, व्यापारी और राजनेताओं का गैंग तैयार किया. और सुनिश्चित किया की देश का भविष्य कुछ एक दशक तो इनके ही हाथ में रहे. और फिर छोटी - मोटी राजनीति को छोड़ कर भारतवर्ष  की हर दिशा और दशा में हस्तक्षेप होने लगा. आखिर क्या कारण है कि छद्म स्वतंत्र भारतवर्ष  की क्रूरतम सरकार को धुरविरोधी राजनितिक दल हर समय बचाने के लिए खड़े ही रहते है. गत्त दस वर्षों के खान्ग्रेस की शासन काल को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह केन्द्रीय खांग्रेसी सरकार अर्थात यह कांग्रेस की सरकार न हुई यह तो साक्षात् ब्रह्मा की ही सरकार हो गई . किसी बड़े राज्य में विपक्षी जीते या केबिनेट के आधा दर्जन मंत्री जेल में हो, छद्म स्वाधीन भारतवर्ष के राजवंश के दामाद पर भ्रष्टाचार के आरोप हो या फिर पोपट, निर्लज्ज ,मूक और अक्षम प्रधानमंत्री मंदमोहन का जीवन्त लोकतंत्र में बार - बार प्रधानमंत्री बनना हो. यह सब भारतवर्ष में बड़े ही मजे से हो रहा है. जहाँ तो सरकार चलाना काँटों का ताज माना जाता था वहाँ इस रोमकन्या सोनिया संचालित खांग्रेसी सरकार तो बड़े ही आराम से चल ही नहीं दौड रही है , मानो थाली में परोसी भोजन को आराम से कोई खा रहा हो , दूसरी ओर यह विपक्ष के ५०-५० साल के राजनैतिक अनुभव वाले बुजुर्ग दर - बदर की ठोकरे खा रहे और चवन्नी छाप लोग देश के सर्वशक्तिमान बन देश की बागडोर संभाले बैठे है. क्यूँ मित्रो ! आपको नहीं लगता कि कुछ तो दाल में काला है ? अगर है तो इस विधर्मी , विदेशी और विदेशी मानसिकता वाली सरकार को निकाल फेंकने की कसम खाएं और स्वदेशी सरकार संस्थापनार्थ भारत , भारतीय और भारतीयता के कट्टर समर्थक नमो की सरकार बनाने में सहभागी बन राष्ट्रभक्तों की श्रेणी में अपना नाम दर्ज कराएं !



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