शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

भारतवर्ष पुकार रहा अपनी गौरवमयी भारतवर्ष के इतिहास को पहचानो

भारतवर्ष पुकार रहा अपनी गौरवमयी भारतवर्ष के इतिहास को पहचानो

राम और कृष्ण का यह देश नैतिक पतन की चरम सीमा तक पहुंच चुका है। आज इस देश के लोगों के पास न तो कोई चरित्र है, न देश-प्रेम और न ही भाई-चारा, जो कि इस देश के समाज की सबसे बडी विशेषता तथा सम्पत्ति होती थी। आज सारा देश भ्रष्टाचार, जातीय वैर-भाव व नफरत की आंधी में झुलस रहा है। इस सबका उत्तरदायित्व है उन लोगों पर, जो कि अपने आपको राम और कृष्ण के उत्तराधिकारी बताते हैं। जिस राम और कृष्ण ने अपनी सभ्यता, संस्कृति और धर्म को बचाने के लिए युद्ध किये, आज उनके तथाकथित उत्तराधिकारी इन सब मर्यादाओं को खत्म करने के लिए युद्ध छेडे हुए हैं।

विश्व को मनुर्भव (हे मनुष्य! तू मनुष्य बन) का सन्देश देने वाला यह देश आज स्वयं मनुष्यता से दूर होता जा रहा है। आज हम अपने सब आदर्श और सिद्धान्त भूलकर भौतिकता के पीछे भाग रहे हैं। जब पश्चिम के देश भौतिकता से तंग आकर आध्यात्मिकता की ओर झुके हैं, तब हमारा भौतिकता की दलदल की तरफ आकर्षण एक खतरनाक संकेत है। इसका लाभ भी आसुरी शक्तियॉं उठा रही हैं। आज हमारा समाज संस्कारविहीन व दिग्भ्रमित होता जा रहा है। किसी को नहीं मालूम कि माता-पिता, भाई-बहन, गुरु आदि के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। आज प्रगति की अन्धी दौड में सब रिश्ते-नाते भुला दिये गये हैं। बेटा बाप को मार रहा है व बाप बेटे को और भाई भाई का कत्ल कर रहा है। आज आदमी अपने अस्तित्व को भूल चुका है और उसे अब अपनी छाया से भी डर लगने लगा है।

सुभाषचन्द्र बोस, लाला लाजपतराय, सरदार भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद,लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, पं. रामप्रसाद बिस्मिल, राजगुरु, सुखदेव, वीर सावरकर, चाफेकर बन्धु जैसे बलिदानियों तथा असंख्य क्रांतिकारियों ने अपने अस्तित्व को मिटाकर देश को आजादी दिलाई थी। इन्होंने देश व समाज को व्यक्तिगत हितों से सदा ऊपर समझा था। लेकिन हमारे बलिदानियों ने स्वाधीनता संग्राम के समय जो कष्ट सहे थे, उन सबको हमने बहुत ही जल्दी भुला दिया। विश्व इतिहास में शायद ही कोई उदाहरण हो, जब किसी देश में अपनी स्वतन्त्रता के बाद गुलामी के समय सहे कष्टों को इतनी जल्दी भुला दिया गया हो।

लेकिन अभी भी समय है, जब हम सम्भल सकते हैं। इसके लिए आवश्यक होगा कि हम अपने गौरवमय इतिहास को पहचानें तथा उसी रास्ते पर चलें, जिस पर चलकर हमारे पूर्वजों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को विश्व में प्रतिष्ठित किया था। अब समय आ गया है, जब हम खुद जगकर नई पीढी को जगायें तथा उन्हें संस्कारित करें। देशवासियो अब उठो! अपने प्यारे भारत की करुण पुकार को सुनो। वह तुम्हें बार-बार पुकार रहा है। उठो और अपने आपको पहचानो।
गौरवमय संस्कृति है हमारी, पहचानो गौरवमय इतिहास को ।
कुसंस्कार मिटा डालो जला दो अन्ध विश्वास को ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें