बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

वंदेमातरम गान- नथूराम गोड़से


वंदेमातरम गान- नथूराम गोड़से

प्रस्तुत लेख महात्मा गांधी हत्या केस के आरोपी नथूराम गोड़से द्वारा अपने बचाव में जो बयान जस्टिस आत्मचरण की विशेष अदालत में 8 नवम्बर 1948 को दिया उसी का अंश है। . . . . . .
वंदे मातरम्‌ न गाया जाय।
 गांधी जी का सबसे बड़ा गुण यही था कि समस्त हिन्दु राष्ट्र‌ के सम्मान और भावनाओं को ठेस पहुंचाकर भी न्याय और अन्याय का विचार न करते हुए मुसलमान के लिए सब कुछ कर देना चाहते थे। क्योंकि उनकी एक ही इच्छा थी कि वे मुसलमान के लीडर माने जाये जिसे मुसलमानों ने कभी स्वीकार नही किया। यह कितनी धूर्तता की बात है कि मुसलमान यह पसंद नही करते थे कि वन्दे मातरम्‌‌ का मशहूर गान गाया जाए इसलिए गांधी ने इसको जहां भी वे करा सकते थे गाना बन्द करा दिया जबकि यह गीत पिछले सौ वर्षो से अपने आप मेंबहुत ही महत्व रखता है क्योकि यह गीत लोगो को देशके के लिए संगठित होने का प्रोत्साहन देता है। सन 1905 ई. में जब बंगाल के विभाजन का विरोध हुआ तबसे यह गीत बहुत ही सर्वप्रिय हो गया था बंगाली इसी गीत से मातृभूमि की सेवा के लिए सौगन्ध खाते थे और जहां यह गीत गाया जाता था वहां बंगालियों ने अपनी जानों तक का बलिदान दिया। अंग्रेज अधिकारी इस गीत के वास्तविक अर्थ को नही समझतें थे। इसका अर्थ केवल मातृभूमि को नमस्कार करना है। इसलिए 40 वर्ष बीतेसरकार ने कुछ समय तक इस पर प्रतिबंध लगा दिया था परन्तु इस प्रतिबन्ध से यह गीत समस्त भारतवर्ष में और भी अधिक सर्वप्रिय हो गया। उस दिन से यह गीत कांग्रेस और अन्य राष्ट्र्‌रीय अधिवेशनों में गाया जाने लगा। यहां तक कि जब एक कौमवादी मुसलमान ने आक्षेप किया तब गांधी ने सारे राष्ट्र्‌ की भावना को ठुकराकर कांग्रेस पर जोर दिया कि इस गीत के गाये बिना ही काम चला लिया जाए। उसकी जगह पर आजकल हम रविन्द्रनाथ टैगोर कागीत जन गण मन गाते है और हमने वन्दे मातरम गीत को गाना बन्द कर किया है। क्या इससे भी अधिक पतित और कोई काम कोहो सकता है कि ऐसे वि्श्व प्रसिद्ध कोरस ( सामूहिक गान) को इस प्रकार बन्द कर दिया जाए और वह भी केवल इसलिएकि एक अज्ञानी हठधर्मी सम्प्रदाय की धार्मिक जिद को पूरा करने के लिए। यदि इस विषय को उचित ढंग से लिया जातातो अज्ञानियों का अज्ञान मिट जाता उनको प्रकाश मिलता परन्तु अपने 30 वर्षो के नेतृत्व में इस महात्मा को ऐसा साहस कभी नही हुआ। उनकी हिन्दू मुस्लिम एकता की नीति का एक ही अर्थ था कि मुसलमानों के आगे मस्तक झुकायें और वे जो मांगे उन्हे सब कुछ वेझिझक दे दिया जावे। परन्तु इसके बावजूद भी यह हिन्दू मुस्लिम एकता समाज में न तो आइ और न ही इस तरह आ सकतीहै।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें