गुरुवार, 15 अगस्त 2013

राष्ट्र गानम

वैदिक राष्ट्र गान

वैदिक राष्ट्र गानम् !

ओ३म् ! आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒म रा॒ष्ट्रे
रा॑ज॒न्यः शूर॑ऽइष॒व्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्री॑ धे॒नुर्वोढा॑न॒ङ्
र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॑यतां निका॒मेनि॑कामे नः प॒र्
फलव॑त्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगक्षे॒मो नः॑ कल्पताम् (यजु २२/२२)
हे महतो महान परमेश्वर ! हमारे राज्य में वेदविद्या में निष्णात , वेद और
उत्पन्न हों
हमारे राष्ट्र में बाण चलाने में प्रवीण ,शत्रुओं को पीड़ित करनेवाले शूर
हमारे राष्ट्र में खूब दूध देनेवाली गौएँ हों
हमारे राष्ट्र में भार ढोने में समर्थ बैल और शीघ्रगामी घोड़े हों
हमारे राष्ट्र में नारियां नगर की रक्षा करने में समर्थ हों
हमारे राष्ट्र में रथ पर स्थित वीर विजयशील हों
हमारे राष्ट्र में जब-जब हम कामना करें तब-तब मेघ जल वर्षाएं
ओषधियाँ हमारे लिए उत्तम फलवाली होकर पकें
हमारा सर्वविध योग = अप्राप्त वास्तु की प्राप्ति और क्षेम = प्राप्
— स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
भावार्थ :– जिन-जिन पदार्थों से एक राष्ट्र समृद्ध हो सकता है , उन
में हुआ है | कोई राष्ट्र समृद्ध नहीं हो सकता , जिसमे ब्राह्मण न हों ,
की शिक्षा देनेवाले महाचार्य न हों | वह राष्ट्र तो अज्ञानान्धकार में
कर बैठेगा , जिसमे सकल कलाकलाप के आलाप करनेवाले महाविद्वान न
अतः राष्ट्रहितचिन्तकों का यह प्रथम कर्तव्य है कि वे यत्न करके अपने
विद्वानों को बसाएँ , ताकि “विद्या की वृद्धि और अविद्या का नाश”
अविष्कारों से राष्ट्र की श्रीविद्धि होती रहे , किन्तु केवल विद्याव्यस
का सञ्चालन नहीं हो सकता | राष्ट्ररक्षा के लिए बुद्धिबल के साथ ब
अतः ब्राह्मणों के साथ योद्धाओं का भी आकलन करें | योद्धा नामम
शस्त्रास्त्र -व्यवहार में निपुण , शत्रु को कँपा देनेवाले महारथी और शू
की भरमार हो , घोड़े , बैल , यातायात के समस्त साधन हों | स्त्रियाँ
आवश्यकता पड़ने पर नगर तथा राष्ट्र का प्रबन्ध करने में समर्थ हों |
अतिवृष्टि तथा अनावृष्टि और उनके कारण होनेवाले दुर्भिक्ष भी न हों |
| आजीविका कमाने में कोई बाधा न हो , कमाई सफल तथा सुरक्षित ह
पर सभी सस्य पकें |
— स्वामी वेदानन्द ( दयानन्द ) तीर्थ
पद्यानुवाद :–
ब्रह्मन ! स्वराष्ट्र में हों , द्विज ब्रह्म तेजधारी |
क्षत्रिय महारथी हों , अरिदल-विनाशकारी ||
होवें दुधारू गौवें , वृषभाश्व आशुवाही |
आधार राष्ट्र की हों , नारी सुभग सदा ही ||
बलवान सभ्य योद्धा , यजमान -पुत्र होवें |
इच्छानुसार वर्षें , पर्जन्य ताप धोवें ||
फल-फूल से लदी हों , औषध अमोघ सारी |
हो योगक्षेमकारी स्वाधीनता हमारी ||

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