रविवार, 18 अगस्त 2013

वैदिक देवता

वैदिक देवता
दिव्य गुण और देने वाले को देवता कहते हैं। जो दूसरों को सिर्फ दे बिना कुछ
वापस लेने की इक्छा के | इस प्रकार जो कोई भी यह दैव गुण रखता हैं उसे
देवता कह सकते हैं | इस प्रकार देवता २ प्रकार से वर्गीकृत होते हैं एक जड़
और एक चेतन | जड़ देवता ३३ हैं | ८ वसु, ११ रूद्र, १२ आदित्य, १
यज्ञ, १ विघु ये कुल ३३ जड़ देवता कहे गए हैं |
पहले हम इनका विवरण देते हैं |
८ वसु हैं – सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश
(यह सब हमें कुछ ना कुछ देते हैं लेते नहीं)
११ रूद्र हैं – दस प्राण और ग्यारहवी जीवात्मा
१२ आदित्य हैं – बारह मास
जड़ देवताओ का पूजन कैसे किया जाए अब यह प्रश्न उठता हैं | क्या धुप,
दीप, अगरबत्ती से इनका पूजन हो जाएगा | नहीं , इन चीजों से ना होकर
अपितु जड़ देवताओ का पूजन देव यज्ञ से होगा | हवन करिये वातावरण में
जो गंदगी हम फैला रहे हैं वह साफ़ करना भी हमारा कर्तव्य हैं | प्रतिक्षण
कितनी मृत त्वचा गिरती हैं | वायु हम कितनी अशुद्ध करते हैं और वातावरण
से जो भी अन्न लेते हैं उसमे लगभग सभी जड़ देवताओ का योगदान हुआ |
हवन कर के हम वापस उनका कुछ अंश उन देवताओ को लौटा देते हैं | और
इसीलिए कहा गया के यज्ञ से बचा हुआ ही हम ले | हम यज्ञ की अग्नि में
यह कहते हुए समिधा डाले के इदम नमम् | यह
मेरा नहीं प्रकृति का प्रकृति को लौटते हैं | दीप अगरबत्ती तो अशुद्ध रूप
आगये बिना जिस से किसी भी लक्ष्य की पूर्ति नहीं होती |
अब आते हैं चेतन देवताओ पर और उनके पूजन पर | चेतन देवता ५ कहे गए
हैं
१ परमात्मा, गुरु, माता-पिता, पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति,
और अथिति
सम्पूर्ण वेद हमें सवितु देव परमात्मा के बारे में बताते हैं | मातृदेवो भव,
पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव
परमात्मा का ध्यान करना उसके अधिक से अधिक गुणों को आचरण में
लाना ही उसकी सच्ची पूजा हैं |
माता पिता का श्राद्ध और तर्पण करना उनकी पूजा हैं | यानी श्रद्धापूर्वक
धर्मानुसार उनकी आगया माननी चाहिए |
सबका गुरु परमात्मा हैं | पर भिन्न विषयो में जिन तपस्वियों ने तप किया हैं
उनको उन विषयों पर गुरु बनाना चाहिए | और वे गुरु जो समाज उद्धार के
लीये शिक्षा दान करे जो पदार्थ का तत्वों का ज्ञान कराये वह गुरु देव हैं |
विवाह यज्ञ हैं जो समाज हित के लिए कहा जाता हैं | वैदिक समाज में पति-
पत्नी एक दूसरे को ईश प्राप्ति में सहायता करते हैं | यही विवाह
का उद्देश्य होता हैं अतः वे देवी-देव कहे गए हैं एक दूसरे के लिए |
अतिथि को हम लोगो ने मान लिया हैं के जो बिना तिथि के आ जाए अरे
बिना तिथि के तो घर चोर-लुटेरे भी आ जाते हैं | अतिथि उसे कहते हैं
जिसका आचरण अच्छा हू | जो धर्मानुसार व्यहवार करता हो | और उसमे
दैव गुण हो |
जड़ पूजा का अर्थ सिर्फ इतना हैं के उन तत्वों का यथा योग्य उपयोग
किया जाए | चेतन की पूजा यह हैं के उस व्यक्तित्व के अधिक से अधिक
अच्छे गुणों को आचरण में लाया जाए | इसी प्रकार जड़ और चेतन
पूजा की जानी चाहिए |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें