गुरुवार, 23 जनवरी 2014

वन्य - उत्पाद अथवा बॉक्साइट आधारित उद्योग स्थापित करने की चिर - प्रतीक्षित माँग कब पूर्ण होगी ?


वन्य - उत्पाद अथवा बॉक्साइट आधारित उद्योग स्थापित करने की चिर - प्रतीक्षित माँग कब पूर्ण होगी ?



झारखंड राज्य का गुमला जिला जंगलों - पहाड़ों , नदी - नालों ,आहर - पोखरों और वन्य उत्पादों व खनिज पदाथों से संपन्न एक ऐसा जिला है, जिसे सरकार की जनजातीय , उद्योग व वन्य नीतियों के स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होने के कारण क्षेत्र में उपलब्ध प्रकृतिक संसाधन का समुचित लाभ अरथात फायदा इसे नहीं मिल रहा है , अपितु केन्द्र व राज्य सरकारें मिलकर सब कुछ ले जा रहे हैं । छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में सतासीन रहने वाली सरकारों ने कभी भी यह नहीं सोचा कि क्या सचमुच वन्य , खनिज और वनवासियों से सम्बंधित इन सरकारी नीतियों से जरूरतमंदों का कल्याण और विकास होगा या फिर से क्षेत्र व राज्य की भलाई के नाम पर मलाई कोई और खायेगा?

गुमला जिले में कुल क्षेत्र 5327 वर्ग किलोमीटर आते हैं , अर्थात जिले का कुल क्षेत्रफल 529546.15 हेक्टेयर है । शुद्ध कृषि क्षेत्र 329600 हेक्टेयर है । वन भूमि 135600 हेक्टेयर है। शुद्ध सिंचित क्षेत्र 22056 हेक्टेयर है । कृष्य बंजर भूमि 31958 हेक्टेयर है । गैर कृषि योग्य भूमि 38226 हेक्टेयर है । जिले में औसत वार्षिक वर्षा 1100 मिलींमीटर होती है । झारखण्ड और सीमावर्ती छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा राज्यों की भांति ही गुमला जिले की सम्पूर्ण वन भूमि , अधिकांश बंजर भूमि व गैर कृषियोग्य भूमि में वन - जंगल व पाट - पहाड़ी चट्टानी क्षेत्र हैं , जहां अकूत वन्य - सम्पदा और खनिज पदार्थों का असीमित भंडार है । उन पठारी क्षेत्रों की सुरम्य वादियों में छोटी - छोटी नदी - नालों की धार भी बहती पाई जाती हैं । लेकिन गुमला सहित सम्पूर्ण झारखंड़ की सम्पदा ही झारखंड़वासियों के लिए अभिशाप बन गयी। गुमला जिले में इमारती व उपस्कर  लकड़ी , अन्यान्य वनोत्पाद , बॉक्साइट व कई अन्य खनिज पदार्थ के अकूत भंडार हैं । अब तो झारखंड की राजधानी रांची से सटे घोर नक्सल प्रभावित गुमला जिले के पालकोट प्रखंड और गुमला प्रखंड के सीमावर्ती गांवों  के पास जिंदल कंपनी के जियोलॉजिस्टों को हीरे की खोज में सफलता मिली है। यहां हीरे के कण किंबरलाइट चट्टानों के बीच छिपे हैं। सुगाकांटा और काशीटांड़ गांवों के बीच दो वर्ग किलोमीटर में जमीन के थोड़े ही नीचे ये चट्टान फैले हुए हैं।
तीन हजार वर्ग किलोमीटर में हीरे की खोज कर रही कंपनी ने इसकी प्राथमिक पुष्टि कर दी है। रिपोर्ट जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस तथा राज्य सरकार के भूतत्व निदेशालय को सौंप दी गई है। रिपोर्ट में अलग-अलग जगह से लिए गए नमूनों और उनके फिजिकल-केमिकल टेस्ट के रिजल्ट का पूरा ब्योरा है। गुमला जिलें की घाघरा , डुमरी , चैनपुर , बिशुनपुर प्रखंड , लोहरदगा जिले की सेन्हा , किसको , पेश्रार प्रखंड और लातेहार जिले की महुवाडांड़ , गारू आदि प्रखंड क्षेत्रों की सीमावर्ती पाट - पहाड़ी क्षेत्रों में बॉक्साइट आदि बहुमूल्य खनिज संपदाओं का अकूत भण्डार छिपा पडा है  , जिसे छद्म स्वाधीनता प्राप्ति काल से ही हिंडाल्को , बिरला आदि कम्पनियां खोदकर यहाँ से अन्यत्र ले जाने में संलग्न हैं । परन्तु गुमला जिला समेत समस्त  झारखंड़ की लकड़ी, झारखंड़ के वन-उत्पाद, झारखंड़ का कोयला, लोहा, ताँबा, अबरख आदि खनिज, उससे सम्बन्धित व्यापार, नौकरी, चाकरी, ठेकेदारी, झारखंड़ की बिजली आदि सभी सम्पदाओं पर झारखंड़ से बाहर के लोगों का कब्जा हो गया है । इन खनिजों के नाम पर कार्य - स्थल पर आवादी और उद्योग स्थापन स्थल पर शहर झारखंड़ के अन्दर और बाहर, भी बाहर के लोगों ने बसाए और रहने लगे। मजे की बात तो यह हो गई कि इन सम्पदाओं के दोहन के लिए जरूरी मजदूर, श्रमिक, अधिकारी भी बाहर से लाए गये। झारखंड़ के लोग झारखंड़ की प्रकृतिक सुन्दरता में ही रम गये। न बाढ़ का डर, न सुखे की त्रासदी। न गर्म न ठंड़ा। साल भर का अनाज उगा लेते ओर गीत गाते। नाचते। माँदर, ढोल, मगाड़ा, बांसुरी, करताल बजाते और मस्त रहते। अपनी संस्कृति को पकड़े बैठे रहे और यहाँ से यहाँ की वन्य व खनिज सम्पदा को बाहर अर्थात अन्यत्र भेजने में मूक सहायक बने रहे । परन्तु जब जलाऊ लकड़ी, चारा, लघु वनोपज व लघु इमारती लकड़ी की मांग के कारण समस्त झारखण्ड की भांति गुमला जिले के अकूत वन्य उत्पाद व बॉक्साइट आदि खनिजो के भण्डार बाहर जाते - जाते सिकुड़ने लगे तो यहाँ के स्थानीय निवासियों में इनके संरक्षण और इनसे एवं इनके उत्पादों से स्थानीय स्तर पर लाभ लेने की महत्वाकांक्षी जगने लगी और वे स्थानीय तौर पर उपलब्ध वन्य व खनिज आधारित उद्योग क्षेत्र अर्थात जिले में ही स्थापित करने की मांग करने लगे । सन 1976 ईस्वी में राष्ट्रीय कृषि आयोग ने वनों के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण अनुशंसाए करते हुए प्रतिरक्षा, संचार व वन्य आधारित उद्योगों की जरुरत की पूर्ति के लिए एक नई वन नीति के निर्माण की बात कही थी। इस नई नीति के परिणामस्वरूप 1955-56 से 1966-67 के मध्य उद्योगों में लकड़ी की खपत दुगनी हो गई। प्लायवुड, कागज और माचिस जैसे वन आधारित उदयोग खूब फले-फूले। छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में अधिकांश समय तक केंद्र की सत्ता में सत्तासीन रहने वाली कांग्रेस तो इस मामले में सदैव चुप ही रहती है , तथा झारखण्ड मुक्ति मोर्चा भी क्षेत्र में सेना के अभ्यास हेतु फील्ड फायरिंग एरिया के स्थापना का विरोध करने मात्र तक सीमित है ,  लेकिन भारतीय जनता पार्टी , झारखण्ड पार्टी , आजसू आदि कम्पनियां गुमला जिला अथवा गुमला लोहरदगा सीमांत क्षेत्र में बॉक्साइट आधारित कारखाना लगाने की मांग अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से उठाती रहती हैं । गुमला लोहरदगा सीमांत क्षेत्र में बॉक्साइट आधारित कारखाना लगाने, बॉक्साइट खदान से सटे गांवों की समुचित विकास, जानलेवा प्रदूषण पर रोकथाम व मांगों को लेकर भाकपा ने प्रगतिशील जनसंघर्ष सभा के बैनर तले तथा झारखंड निर्माण मजदूर निर्माण आदि मंचों के द्वारा गत कई वर्षों से आये दिन लोहरदगा में हिंडाल्को गेट के समक्ष धरना प्रदर्शन किया जाता रहता है । लेकिन गुमला , लोहरदगा  जिला के सीमावर्ती क्षेत्रों के जंगली और पाट अर्थात पहाड़ी क्षेत्रों में वन्य उत्पाद आधारित उद्योग अथवा क्षेत्रों में उपलब्ध खनिज बॉक्साइट आधारित उद्योग लगाने की गुम्लावासियों की चिर - प्रतीक्षित मांग आज तक परवान नहीं चढ़ सकी ।

क्षेत्र व जिले में क्रियाशील प्रायः सभी राजनैतिक दलों ने वन्य व खनिज आधारित विशेषकर बॉक्साइट आधारित उद्योग स्थापित करने की मांग को शिद्दत से अपनी चुनावी वादों एवं आश्वासनों में भुनाया परन्तु जिले वासियों की यह मांग आज तक परवान नहीं चढ़ सकी है । पालकोट प्रखंड को छोड़कर गुमला जिले के सभी प्रखंड , लोहरदगा जिले के समस्त प्रखंड क्षेत्र एवं रांची जिले मांडर विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर लोहरदगा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र क्षेत्र का गठन किया गया है ।
 इस क्षेत्र  में स्वाधीन भारतवर्ष में होने वाले सभी लोक व विधान सभा चुनावों में यहाँ लड़ने वाली सभी राजनितिक पार्टियों ने जिले में बॉक्साइट आधारित उदयोग स्थापित करने की मांग पूर्ण करने के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया परन्तु जिले के हमेश छले ही गए । परन्तु लोहरदगा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के वर्तमान सांसद सुदर्शन भगत ने जिले इ बॉक्साइट आधारित उद्योग स्थापित करने के मुद्दे को शिद्दत से महसूस किया और प्रायः हर मंच पर इसे उठाने का कोई मौका हाथ से चुकने न दिया । लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में बाक्साइट उद्योग स्थापित कराने को ले वे लगातार प्रयासरत हैं। इसे लेकर लोक सभा सत्र के दौरान प्रश्नकाल में बाक्साइट उद्योग स्थापित करने को ले प्रश्न किया था। साथ ही प्रधानमंत्री से मिलकर इस दिशा में कार्रवाई करने का भी अनुरोध कर चुके हैं । उक्त बातें सांसद सुदर्शन भगत ने गत दिनों मीडिया से बतलाई थी , जो उस  वख्त कई समाचार - पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी ।सांसद ने कहा था कि मैं तो क्षेत्र की विकास के लिए हमेशा प्रयासरत हूं, परन्तु सरकार तो मेरी नहीं है। मैं सिर्फ विषय ही रख सकता हूं, कार्रवाई तो सरकार को ही करना होता है। सांसद श्री भगत ने कहा कि लोहरदगा-टोरी लंबित रेल परियोजना को शीघ्र पूरा करने, गुमला होते हुए कोरबा तक रेल विस्तारीकरण की मांग भी उन्होंने लोस में लिखित भाषण के रूप में देने की बात बताई। साथ ही कहा कि पूर्व के बजट में लोहरदगा-कोरबा रेल लाईन विस्तारीकरण कि स्वीकृति मिली थी जिसे झारसुगड़ा होते हुए कोरबा तक विस्तारीकरण को ले छत्तीसगढ़ के सांसद दिलीप सिंह जुदेव एवं विष्णुदेव सायं के साथ मिलकर लोस में संयुक्त पत्र दिया है। उक्त वार्ता में उन्होंने बतलाया कि लोहरदगा रेवले स्टेशन पर मुलभूत सुविधाओं की कमी को दूर करने एवं एल्लपी यात्री रेल गाड़ी का ठहराव पोकला स्टेशन में करने कि भी मांग की है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से मुलाकात कर वे अटल बिहारी बाजपेयी के समय में झारखंड के चतरा में शिलान्यास किए गए एनटीपीसी पर काम शुरू कराने, सिंदरी फर्टीलाईजर व लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में बॉक्साइट उद्योग स्थापित करने की मांग रखी है। साथ ही क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए विभागीय मंत्री से भी बात की है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में अगर कोई बॉक्साइट आधारित उद्योग लगाने के लिए पहल करता है तो निश्चित रूप से वे खुलकर उसकी मदद करेंगे लेकिन पहले यह तय होगा कि क्षेत्र से बेरोजगारी दूर करने में व कंपनी प्राथमिकता तय करेगी।अब देखते हैं जिलेवासियों की वन्य - उत्पाद अथवा बॉक्साइट आधारित उद्योग स्थापित करने की चिर - प्रतीक्षित माँग कब पूर्ण होती है ????

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