रविवार, 26 जनवरी 2014

अहिंसा की गलत परिभाषा गढ़ने के कारण ही आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि

अहिंसा की गलत परिभाषा गढ़ने के कारण ही आतंकवादी  घटनाओं में वृद्धि

अहिंसावादी समाज की स्थापना के लिए तथा समाज के शांतिप्रिय लोगों के अधिकारों की सुरक्षार्थ भारतवर्ष सदा से ही शास्त्र के साथ शस्त्र का समन्वय स्थापित करके चलने वाला राष्ट्र रहा है। यह दुर्भाग्य रहा इस देश का कि इसे कायरों की सी अहिंसा वाला देश बना दिया गया। जिससे हम यह भूल गये कि अहिंसा की रक्षार्थ भी हिंसा की आवश्यकता होती है। अहिंसा की वर्तमान प्रचलित परिभाषा ने हमें आलसी और प्रमादी बनाया है। फलस्वरूप आजादी के पिछले 67 वर्षों में हमने अहिंसा की अखण्ड ज्योति पर लाखों निरोह लोगों के नरमुण्ड कट कटकर धड़ाधड़ गिरते देखे हैं। कश्मीर, पंजाब का आतंक पूर्वोत्तर भारत के अशांत राज्यों में जारी हिंसा का तांडव, माओवादी व नक्सली हिंसा, आतंकवादी घटनाएं आदि इतने व्यापक स्तर पर होती रही हैं कि भारत को अहिंसावादी राष्ट्र कहने में भी शर्म आने लगी। ये आतंकवादी घटनाएं इसलिए बढ़ी हैं कि हमने अहिंसा की गलत परिभाषा गढ़ी कि कोई तुम्हारे एक गाल पर यदि चांटा मारे तो आप दूसरा गाल उसके सामने कर दो। हम चांटे खाते रहे और दुश्मन हमारे जनाजे गिनते रहे। इस अहिंसा ने हमें राष्ट्र धर्म से विमुख किया। हम रास्ता भूल गये। फलस्वरूप सारी व्यवस्था अस्त व्यस्त हो गयी।

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