शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

पति-पत्नी का परस्पर व्यवहार सामाजिक धर्मों की परिधि में आता है क्या ?????

"पति-पत्नी का परस्पर व्यवहार सामाजिक धर्मों की परिधि में आता है
क्या ?’
‘‘हाँ, अवश्य आता है ,परन्तु वह समाज परिवार ही है। अर्थात् पति-
पत्नी सम्बन्ध पारिवारिक विषय है और परिवार भी एक समाज है। परिवार
की बात परिवार से बाहर समाज में तथा राज्य में तब ही जानी चाहिये, जब
कोई परिवार का घटक यह समझे कि घर में उसका निपटारा नहीं हो सकता।
जहाँ तक सम्भव हो, इसको परिवार के भीतर ही निपटाना चाहिये।’ ’’
पति-पत्नी सम्बन्धों में मुख्य है पंच महायज्ञ करना; परन्तु इसके
अतिरिक्त भी पत्नी और पति के कुछ धर्म हैं। उनका सम्बन्ध है उनके
आत्मा के साथ। इसमें परमात्मा की उपासना और धृति, दम, शौच, धी :
और विद्या आते हैं। मुसीबत में धैर्य से रहना; अपनी कामनाओं का दमन
करना; शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध-पवित्र रखना; योग से
बुद्धि को निर्मल और तीक्ष्ण करते रहना एवं ज्ञान प्राप्त करना—ये
कर्म हैं जिनसे आत्मा उन्नत होती है और परमात्मा की उपासना होती है।

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