रविवार, 28 जुलाई 2013

परमाणुशास्त्र के जनक आचार्य कणाद - अशोक "प्रवृद्ध"

परमाणुशास्त्र के जनक आचार्य कणाद
   अशोक "प्रवृद्ध"
 परमाणु शास्त्र के जनक आचार्य कणाद हैं।परमाणुशास्त्री आचार्य कणाद 6 सदी ईसापूर्व  गुजरात के प्रभास क्षेत्र (द्वारका के निकट) में जन्मे थे।
इन्होने वैशेषिक दर्शनशास्त्र की रचना की |  दर्शनशास्त्र (Philosophy) वह ज्ञान है जो परम सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है|
माना जाता है कि परमाणु तत्व का सूक्ष्म विचार सर्वप्रथम इन्होंने किया था  इसलिए इन्ही के नाम पर परमाणु का एक नाम कण पड़ा |
It was Sage Kanada who originated the idea that anu (atom) was an indestructible particle of matter

महर्षि कणाद ने सर्वांगीण उन्नति की व्याख्या करते हुए कहा था ‘यतो भ्युदयनि:श्रेय स सिद्धि:स धर्म:‘ जिस माध्यम से अभ्युदय अर्थात्‌ भौतिक दृष्टि से तथा नि:श्रेयस याने आध्यात्मिक दृष्टि से सभी प्रकार की उन्नति प्राप्त होती है, उसे धर्म कहते हैं।

परमाणु विज्ञानी महर्षि कणाद अपने वैशेषिक दर्शन के १०वें अध्याय में कहते हैं
 ‘दृष्टानां दृष्ट प्रयोजनानां दृष्टाभावे प्रयोगोऽभ्युदयाय‘
अर्थात्‌ प्रत्यक्ष देखे हुए और अन्यों को दिखाने के उद्देश्य से अथवा स्वयं और अधिक गहराई से ज्ञान प्राप्त करने हेतु रखकर किए गए प्रयोगों से अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होता है।
 इसी प्रकार महर्षि कणाद कहते हैं पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, दिक्‌, काल, मन और आत्मा इन्हें जानना चाहिए। इस परिधि में जड़-चेतन सारी प्रकृति व जीव आ जाते हैं।

ईसा से ६०० वर्ष पूर्व ही कणाद मुनि ने परमाणुओं के संबंध में जिन धारणाओं का प्रतिपादन किया, उनसे आश्चर्यजनक रूप से डाल्टन (6 सितम्बर 1766 – 27 जुलाई 1844)  की संकल्पना मेल खाती है। इस प्रकार कणाद ने जॉन डाल्टन से लगभग 2400 वर्ष पूर्व ही पदार्थ की रचना सम्बन्धी सिद्धान्त का प्रतिपादन कर दिया था |
कणाद ने न केवल परमाणुओं को तत्वों की ऐसी लघुतम अविभाज्य इकाई माना जिनमें इस तत्व के समस्त गुण उपस्थित होते हैं बल्कि ऐसी इकाई को ‘परमाणु‘ नाम भी उन्होंने ही दिया तथा यह भी कहा कि परमाणु स्वतंत्र नहीं रह सकते।
 कणाद आगे यह भी कहते हैं कि एक प्रकार के दो परमाणु संयुक्त होकर ‘द्विणुक‘ का निर्माण कर सकते हैं। यह द्विणुक ही आज के रसायनज्ञों का ‘वायनरी मालिक्यूल‘ लगता है। उन्होंने यह भी कहा कि भिन्न भिन्न पदार्थों के परमाणु भी आपस में संयुक्त हो सकते हैं। यहां निश्चित रूप से कणाद रासायनिक बंधता की ओर इंगित कर रहे हैं। वैशेषिक सूत्र में परमाणुओं को सतत गतिशील भी माना गया है तथा द्रव्य के संरक्षण (कन्सर्वेशन आफ मैटर) की भी बात कही गई है। ये बातें भी आधुनिक मान्यताओं के संगत हैं।
ब्रह्माण्ड का विश्लेषण परमाणु विज्ञान की दृष्टि से सर्वप्रथम एक शास्त्र के रूप में सूत्रबद्ध ढंग से महर्षि कणाद ने आज से हजारों वर्ष पूर्व अपने वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित किया था।
 कुछ मामलों में महर्षि कणाद का प्रतिपादन आज के विज्ञान से भी आगे जाता है। महर्षि कणाद कहते हैं, द्रव्य को छोटा करते जाएंगे तो एक स्थिति ऐसी आएगी जहां से उसे और छोटा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यदि उससे अधिक छोटा करने का प्रत्यन किया तो उसके पुराने गुणों का लोप हो जाएगा। दूसरी बात वे कहते हैं कि द्रव्य की दो स्थितियां हैं- एक आणविक और दूसरी महत्‌। आणविक स्थिति सूक्ष्मतम है तथा महत्‌ यानी विशाल व्रह्माण्ड। दूसरे, द्रव्य की स्थिति एक समान नहीं रहती है।
अत: कणाद कहते हैं-
 ‘धर्म विशेष प्रसुदात द्रव्य गुण कर्म सामान्य विशेष समवायनां पदार्थानां साधर्य वैधर्यभ्यां तत्वज्ञाना नि:श्रेयसम"  :- वैशेषिकo दo-४
अर्थात्‌ धर्म विशेष में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष तथा समवाय के साधर्य और वैधर्म्य के ज्ञान द्वारा उत्पन्न ज्ञान से नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है।

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