रविवार, 21 जुलाई 2013

श्रद्धा,भक्ति आस्था और असीम अनुकम्पा का प्रतीक है नागफेनी के कोयल नदी तट पर अवस्थित जगनाथ महाप्रभु का मंदिर अशोक "प्रवृद्ध"

श्रद्धा,भक्ति आस्था और असीम अनुकम्पा का प्रतीक है नागफेनी के
कोयल नदी तट पर अवस्थित जगनाथ महाप्रभु का मंदिर
अशोक "प्रवृद्ध"
झारखण्ड के राष्ट्रीय उच्च मार्ग संख्या 23 अब 134 पर गुमला और
सिसई प्रखंड की सीमा पर बह रही दक्षिण कोयल नदी के तट पर मुर्गु
ग्राम पंचायत के नागफेनी में अवस्थित श्रद्धा,भक्ति ,आस्था और असीम
अनुकम्पा के प्रतीक श्री जग्गंनाथ महाप्रभु के पुरातन मन्दिर से प्रतिवर्ष
आषाढ़ माह में जगन्नाथ महाप्रभु की रथयात्रा तथा प्रत्येक 14
जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर मकरध्वज भगवान की रथयात्रा के
साथ विशाल मेला का आयोजन किया जाता है। इन पावन अवसरों पर
हजारों श्रद्धालु दक्षिणी कोयल नदी की धारा मेंस्नान कर पौराणिक
जगन्नाथ मंदिर में भगवान की पूजा -अर्चना करते है और अपनी सुख,
शांति व समृद्धि की कामना करते हैं।
दक्षिणी कोयल नदी के तट पर बांस-झुण्ड ऎव्म आम्र बगीचा के मध्य
अवस्थित नागफेनी के श्रीजगन्नाथ मंदिर का इतिहास काफी पुराना है।
बताया जाता है कि यह क्षेत्र जब नागवंशी राजाओं की कर्मभूमि थी तब
उड़ीसा के जग्गंनाथपुरी से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को लाकर
नागफेनी में स्थापित कराया गया था। मंदि र में लगे एक शिल्ला पट के
अनुसार श्री जग्गंनाथ मंदिर का निर्माण रातू गढ़ के महाराजा रघुनाथ शाह
ने विक्रम सम्बत 1761 में कराया था और मंदिर में विधिवत पूजा -
अर्चना हेतु जग्गंनाथपुरी से ही पंडा लाए थे और मंदिर एवं पुजारियों के
निर्वाह के लिए धन-दौलत,जमीन-जायदाद आदि प्रदान किये थे। आज
भी यहाँ के पुजारी और कई अन्य जातियों के लोग आपसी वार्त्तालाप में
ओडिया भाषा का प्रयोग करते हैं।अपने सथापना काल से ही निरंतर
यहाँ आषाढ़ माह में भगवान जग्गंनाथ स्वामी की रथयात्रा बड़े ही धूम-धाम
व समरोह पूर्वक निकाली जाती है।्
श्री जग्गंनाथ महाप्रभु मंदिर नागफेनी में भगवान् जग्गंनाथ अर्थात
श्रीकृष्ण ,उनके अगरज बलराम (बलभद्र) एवं बहन
सुभद्रा की जग्गान्नाथ्पुरी से लाइ गई काष्ट निर्मित विशालकाय प्रतिमाएं
प्रतिष्ठापित हैं। बताया जाता है कि इन प्रतिमाओं को महाराजा रघुनाथ
शाह ने ओड़िसा के जग्गंनाथपूरी से हाथियों की सवारी क्राकर लाया था।
जग्गंनाथ ,बलभद्र एवं सुभद्रा की इन काष्ट-निर्मित मुख्य प्रतिमाओं के
अतिरिक्त मंदिर में अनेक बहुमूल्य धातुओं से निर्मित विभिन्न देवी -
देवताओं की दर्जनों अन्य मूर्तियाँ भी है। मुख्य मनदिर परिसर में
ही भगवान शिव का एक मंदिर है। जग्गंनाथ सवामी के दर्शन, पूजन हेतु आने
वाले श्रद्धालु भक्त शिव मन्दिर में भी पूजा करते हैं ।मंदिर परिसर के बाहर
किसी जमाने में शायद मुग़ल काल में अपने सतीत्व की रकषा हेतु सती हुई
सात बहनों की समाधि सथल हैं। मंदिर से कुछ दुरी पर कोयल नदी के तट
पर खुले आसमान के नीचे बाबा अष्ट कमलनाथ सती महादेव विराजमान हैं।
सदियों से खुले आसमान के नीचे नदी किनारे अवस्थित बाबा अष्टक्म्लनाथ
सती महादेव की यह विशेषता है कि अष्ट कमल दल के ऊपर शिवलिंग
अधिष्ठापित हैं।मान्यता अनुसार अष्टकमल दल के ऊपर शिवलिंग
की प्रतिस्थापित शिव सथल बिरले ही प्राप्य हैं ।अष्ट कमल दल पर
अधिष्ठापित शिवलिंग की आराधना,उपासना,दर्शन -पूजन से
शिवभक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसी मान्यता के कारण
यहाँ श्रावण मास एवं शिव्रात्री के पावन अवस्रों पर शिवभक्तों की अपार
भीड़ उमड़ पडती है। बगल में ही पहाड़ी है जो कई कहानियों व
किम्बदंतियों को समेटे है ।समीप ही मंदिर के नागफेनी का श्मशान घाट
भी है। सावन महिने में यहाँ पर बहने वाली कोयल नदी की धारा में सनान
कर कांवर में जल लेकर मुर्गु के बाबा च्रैयानाथ (चरण नाथ) शिव मन्दिर में
जलार्पण किये जाने की परि पाटी है। जिसकी एक अलग कहानी है।
दक्षिणी कोयल नदी के तट पर जग्गंनाथ महाप्रभु मंदिर नागफेनी से आषाढ़
माह में भगवान जग्गंनाथ की रथयात्रा बड़े ही धूम-धाम के साथ
समारोहपूर्वक निकाली जाती है।दो चरणों में निकलने वाली जग्गंनाथ
महाप्रभु की इस रथयात्रा के क्रम में आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को भगवान्
जग्गंनाथ अपने अग्रज बलभद्र एवं बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार
होकर मुख्य मन्दिर से करीब एक किलोमीटर दूर अवस्थित
मौसी बारी (गुंडीचा गढ़ी) तक जाते हैं। आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को मुख्य
मन्दिर से मौसी बारी तक निकाली बजाने वाली इस
रथयात्रा को चलती रथयात्रा कहते हैं। मौसी बारी अर्थात अपने मौसी के
यहाँ भगवान जग्गंनाथ आषाढ़ शुक्ल द्वितीय से नौ दिनों तक विश्राम करते
हैं और आषाढ़ शुक्ल एकादशी को मौसी बारी से अपने भाई- बहन के साथ
वापस अपने मुख्य मन्दिर वापस लौट आते हैं। इस यात्रा को घूरती -
रथयात्रा कहा जाता है।जग्गंनाथ सवामी के इस चलती और
घूरती रथयात्रा का अत्यंत पुण्यमयी महत्व होने के कारण
हजारों की सन्ख्या में श्रद्धालु गण भगवान् जग्गंनाथ की दर्शन-पूजन और
रथ सन्चालन हेतु शामिल होते हैं।ू
इस्केअतिरिक्त नागफेनी में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन चौदह
जनवरी को भी रथयात्रा का आयोजन पिछली शताब्दी केे प्रारंभिक
वर्षों से किया जा रहा है। मकर संक्रांति के पावन अवसर पर लगने वाले इस
मेले का भी अपना एक विशेष महत्व है। नागफेनी के ऐतिहासिक जगन्नाथ
मंदिर में भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र एवं बहन सुभद्रा सहित भगवान
मकर ध्वज की मूर्ति है। मकर संक्रांति के दिन भगवान मकरध्वज के विशेष
पूजा होती है और रथ यात्रा निकाली जाती है।ु
जग्गंनाथ महाप्रभु मन्दिर के व्र्तामान सेवक और पुजारी मनोहर
पंडा बताते है कि मकर संक्रान्ति के दिन भगवान मकरध्वज की विशेष
पूजा होती है। यह बलराम का ही एक रूप है। मकर संक्रान्ति के दिन
इनकी रथ यात्रा निकाली जाती है। बताया जाता है कि विगत सदी के
प्रारम्भिक व्र्षों में एक रात्रि मंदिर के पुजारी कृपा सिंधु पंडा को एक
सपना आया, जिसमें कोयल नदी की धारा में बहकर आ रहे मूर्ति को मंदिर
में स्थापित करने और विधि विधान से पूजा करने का निर्देश मिला।
पुजारी ने सुबह होते ही मूर्ति की खोज की और इसकी जानकारी रातुगढ़ के
छोटानागपुर के महाराजा को दी और मेला लगाने का निर्देश प्राप्त किया।
तब से नागफेनी में मकर संक्रान्ति के दिन मेला का आयोजन होता है।
भगवान भास्कर के मकर राशि में प्रवेश करने की तिथि का एक ज्योतिषीय
व अध्यात्मिक महत्व है। इस तिथि से सूर्य धीरे-धीरे उतरायण की ओर
बढ़ने लगते हैं। दिन बड़ी और रातें छोटीहोने लगती हैं।अतः इस
तिथि का अपना एक अलग महत्व सनातान्धार्मियों में है।
मकर संक्रांति के दिन सरोवरों में स्नान करना, भगवान की पूजा एवं
गरीबों के बीच दान करने और दही चूड़ा व तिल से बनी मिठाई खाने
का अध्यात्मिक महत्व होता है। यही कारण है कि मकर संक्रान्ति के दिन
नागफेनी में होने वाले मेला में काफी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते है और
कोयल नदी में स्नान कर मंगल कामना करते हैं। इस दिन श्रद्धालु गरीबों के
बीच दान करते हैं। इसके बाद दही चूड़ा, गुड़, तिलकुट आदि का सेवन करते
हैं।

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