बुधवार, 31 जुलाई 2013

विष्णु के दशावतारों में बुद्ध नहीं -अशोक "प्रवृद्ध"

विष्णु के दशावतारों में बुद्ध नहीं
   अशोक "प्रवृद्ध"ं
विष्णु का अर्थ है-विश्व एक संरक्षक. अवतार के दसवें सिंद्धांत के
आधार पर भूत काल में नौ (9) अवतार हो चुके हैं.
मत्स्य, कुर्म (कच्छप), वाराह, नरसिम्हा, वामन, परशुराम, राम,
कृष्ण, बुद्ध, कल्कि (भविष्य में) अवतार.
विष्णु के पाँच प्रारूप-परमात्मा, सर्वोच्च आत्मा, परमेश्वर=सर्वोच्च
शक्ति, ब्रम्हाण के संरक्षक, विश्व रूप ( गीता के अनुसार)
10वें अवतार कल्कि युग के अंत में होगा. जिस तरह सभी अवतारों में
पापों और पापियों का सफाया किया गया है उसी तरह कलियुग में
पापियों के संहारक के रूप में अवतरित होंगे. वृतासुर और शंबरासुर के
संहारक के वेद में जो इन्द्र क़ि स्तुति क़ि गई है. वह विष्णु हैं. वेद में इन्द्र
को ही विष्णु के रूप उधृत किया गया है.
"विभूम्या इन्द्र सानू" (इन्द्र धरा से लेकर ऊँचे-ऊँचे पर्वतों तक
फैला हुआ है) विश-स्थापित करना. (लैटिन -विकूस, इंग्लिश-विच-
विलेज). वेद-अंतरांचल तक प्रवेश करना अर्थात्- कोई ऐसा स्थान
नहीं है जहाँ विष्णु नहीं हैं. "यद् विशिटो भवति तद विष्णुर्भवति"
सर्वोच्च सत्ता के रूप में विष्णु में अनंत गुण. उनमे से छ: गुण इस प्रकार
है- 1-सर्व ज्ञाता, 2.संप्रभूता, 3. शक्ति, 4.बल, 5.वीर्य, 6. वैभवता.
ऋग्वेद में विष्णु को 93 बार उच्चारित किया गया है. इसके बाद दूसरे
देवता के साथ में स्वतंत्र रूप से याद किये गये है.
ऋग्वेद के दो स्तोत्र में मंडल -
7 विष्णु के लिए है. 7 .99 - ---विष्णु को ईश्वर के रूप में संबोधित
किया गया है. जो पृथ्वी और स्वर्ग को पृथक करते हैं. यह चरित्र इन्द्र
के रूप द्रष्टव्य है.
स्तोत्र 7.100 - तीन कदमों का वर्णन है. जो ब्रह्माण्ड तक फैले हुए
हैं और तीन जगह उनके कदम है.
विष्णु सुक्त - प्रथम और द्वितीय फैलाव पृथ्वी और आकाश है. जिसे
मनुष्य देखते है. तीसरी जगह स्वर्ग (आकाश) है. यही अंतिम जगह
विष्णु से सम्बन्धित है.
ऋग्वेद के आठवे मंडल-विष्णु इन्द्र से शक्ति प्राप्त करते हैं.
गीता-कृष्ण विष्णु एक अवतार हैं. कृष्ण अर्जुन को प्रकृति के सर्वोच्च
शक्ति तथा योग के विभिन्न प्रक्रिया के बारे में उपदेशित करते हैं.
भागवत पुराण- मैं ही लक्ष्य हूँ. बाधक हूँ. जगत गुरु हूँ. सबसे
प्यारा दोस्त हूँ. मैं ही रचनाकर और उन्मूलनाकार हूँ.
मत्स्य अवतार-सतयुग के अंत में मत्स्य अवतार रूप में अवतरित हुए हैं.
जब पृथ्वी जल मग्न हो चुकी थी. इस रूप में बाढ़ से वेद और
मानवता की रक्षा किये हैं.
कूर्म अवतार - इस अवतार में असुरों से अमृत का कलश और देवताओं
क़ि रक्षा की है. इसमें पीछे से सृष्टि की रचना में मदद की है.
वराह अवतार (सुअर) - सतयुग के अंत में बाढ़ में
भूमि देवी (पृथ्वी माता) समुद्र के नीचे जाने लगी तो समुद्र में
गोता लगा कर इस देवी को अपने दो दांतों से जल से ऊपर उठा कर
बचाएँ.
वामन अवतार - (त्रेता युग) राजा बलि के पतन के लिए अवतरित
होना पड़ा.
नरसिंह अवतार (आधे आदमी और आधे शेर) - इस अवतार में
हिरण्याकश्यप जैसे आतातायी राक्षसों का नाश किया.
परशुराम अवतार-(त्रेता युग) - जब हैह्यवंशी दुष्ट क्षत्रिय
राजा संतो और मनुष्यों को कष्ट पहुँचाने लगे तब यह योद्धा उन दुष्ट
क्षत्रियों के नाश के लिए अवतरित हुये.
राम अवतार (त्रेता युग में) - राक्षस राज रावण का वध के लिये यह
अवतार लिया.
कृष्ण अवतार- कंस का नाश के लिए बलराम के साथ अवतरित हुये.
कल्कि अवतार (सफ़ेद घोड़े पर सवार और हाथ में तलवार लिए विष्णु
का अंतिम अवतार)- यह अंतिम अवतार होंगे. यह भगवान विष्णु
का महावतार होगा. कलयुग जैसे अन्धकार और नाशवान युग
का अवसान होगा. कल्कि का संस्कृत कालका है. इसका अर्थ -
अन्धकार को समाप्त करना है. संस्कृत के दूसरे अर्थो में -
कालकी का अर्थ है - सफ़ेद घोडा.
कलयुग क़ि शुरुआत भगवान कृष्ण के गायब होने के बाद हुई. लगभग
3012 बी०सी०/ प्रभु चैतन्य 500 वर्ष पहले आये. जब यह युग समीप
आया तो संत ने धरा को छोड़ दिया. अंत में 432000 के बाद यह युग
शुरू होगा.
विवरण :
कल्कि- 7वीं सदी, गुप्त साम्राज्य के आस पास विष्णु पुराण में उधृत
है. (त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु, और महेश). विष्णु पुराण तो यहाँ तक
दावा कर रही है क़ि सम्भल गांव में विष्णुयश, में ब्राह्मण परिवार
इसका जन्म होगा. पद्मा पुराण - स्वयंभुव मनु को गोमती नदी के
किनारे भगवान् विष्णु ने वर दिया था - राम, कृष्ण और कल्कि नाम से
तीन पुत्र होगा. भगवान् कल्कि कलयुग के अंत में पैदा होंगे और
पापों से इस पृथ्वी को मुक्त करेंगे.
अग्नि पुराण में भी कल्कि, हरी (विष्णु के पुत्र) का विवरण है.
संरचना और विनाश के संतुलन के लिए अवतार होता आ रहा है.
श्री मद्भागवत गीता-कलयुग के अंत में जब भगवान के नाम से कोई
विषय नहीं रह जायगा. सता की बागडोर शुद्रों के हाथो में आ
जायेगी, जहाँ त्याग और दया नाम क़ि कोई वस्तु नहीं रह
पायेगी ----------------------श्री मदभगवद गीता 12 .2 39 ).
इस आधार पर महात्मा बुद्ध और महावीर को विष्णु
का दसवां अवतार नहीं माना जा सकता हैं. 10वें अवतार बुद्ध नहीं है.
बुद्ध ----!!! अगर बुद्ध को भगवान श्रीविष्णु का आठवां अवतार
माना जाये तो फिर हिन्दू धर्म से हट कर अलग धर्म क़ि स्थापना करने
क़ि क्या जरुरत थी? जिस तरह उक्त अवतार के अवतारी हिन्दू धर्मो में
सुधार की. उसी तरह बुद्ध को भी करना चाहिए था. इसलिए हिन्दू धर्म
से सम्बंधित किसी भी पुस्तक में बुद्ध अवतार के रूप में उधृत नहीं हैं.
उपदेश : दुखो का कारण इच्छा और सम्बन्ध है.
एक बात सामने आ रही है, अगर बुद्ध, हिन्दू धर्म (वैदिक धर्म) के
अंतर्गत ही काम करते तो वैदिक धर्म में क्लिष्टता विद्यमान ही रहती.
सभी अवतारियों ने मानवीय कल्याण के लिए सराहनीय पहल की.
लेकिन बुद्ध (छठी सदी) समय में धार्मिक क्लिष्टता जड्बद्ध था. जिसे
सुधार लाने में बुध ने कड़ी मेहनत की. सुधार के आधार पर और हिन्दू
कुल में जन्म लेने के आधार पर इन्हें विष्णु के दसवे अवतार
माना जा सकता है. चूंकि हिन्दू यानी मानव मात्र उन्ही के संतान है
और उन्होंने विष्णु तक पहुँचने के लिए सुगम मार्ग दिखलाये इस आधार
पर विष्णु का अवतार माना जा सकता है. इस आधार पर वर्धमान
महावीर (चौथी सदी) को भी अवतार के रूप में माना जा सकता है.
वर्धमान महावीर नौवें और बुद्ध दसवें अवतार हैं.
अगर हम इन दोनों धर्मो के प्रणेता को लेते है तब विष्णु के 8 और 2
(महावीर और बुद्ध) के अवतार. इस तरह विष्णु के 10 अवतार हो चुके
है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें